अर्थला की संजय कालोनी में हुई हृदय विदारक घटना ने हर किसी को झकझोर कर रख दिया। जिसने ने भी वह मंजर देखा, कांप उठा। जान देने से पहले कोई अपने कलेजे के टुकड़ों व पत्नी की हत्या कैसे कर सकता है, यह सवाल हर किसी की जुबान पर था। बाथरूम में बिना धुले बर्तन और रसोई में रखी ताजा सब्जियां काफी कुछ बयां कर रहे थे। साफ जाहिर था कि घटना को अंजाम देने का फैसला धीरज ने बृहस्पतिवार को ही लिया और परिवार के खात्मे से पहले पत्नी-बच्चों के साथ भरपेट व स्वादिष्ट भोजन किया।
बाथरूम में लगा था बिना धुले बर्तनों का ढेर
बाथरूम में खाली बर्तनों का ढेर था। उन्हें देखकर लग रहा था कि रात के खाने में दो तरह की सब्जी बनाई गई थी। इनमें एक रसेदार भी थी। इसके अलावा चावल भी बनाए गए थे। खाने के बाद मुंह मीठा करने के लिए खीर भी बनाई गई थी। कुल मिलाकर धीरज ने ऐसा भोजन बनवाया था, जैसे किसी खुशी या जश्न के मौके पर बनाया जाता हो।
रसोई में रखी थीं कई दिन की सब्जियां
रसोईघर में सफाई की हुई थी। फर्श पर एक कटोरी में चावल रखे थे, जबकि एक टोकरी में लौकी, फूलगोभी, मिर्च व टमाटर रखे थे। वहीं, पास ही एक पॉलीथिन में मटर व तेजपत्ते रखे थे। बताया जा रहा है कि बुधवार को धीरज ही सब्जियां लेकर आया था। इससे जाहिर है कि परिवार के खात्मे की बात उसने बृहस्पतिवार से पहले नहीं सोची थी।
मकान मालकिन बोली, कभी नहीं सुना झगड़ा
मकान मालिक कृष्णवीर सिंह की पत्नी कौशल ने बताया कि धीरज चार साल से उनके यहां रहता था। काजल काशीपुर की रहने वाली थी। दोनों काफी व्यावहारिक थे। कभी उनके बीच झगड़ा होता सुनाई नहीं दिया। सुबह करीब 9 बजे धीरज के साथी भीम सिंह के आने के बाद उन्हें घटना के बारे में पता चला। कौशल का कहना है कि उनके बेटे व बेटी की शादी हो चुकी है। घर के ग्राउंड फ्लोर पर वह पति के साथ रहती हैं।
रात में ड्यूटी पर था पड़ोसी किराएदार
मकान मालकिन ने बताया कि धीरज के बराबर वाले कमरे में पंचम नामक किराएदार रहता है। जो रात की ड्यूटी करने के बाद सुबह तक घर नहीं लौटा। घटना किस वक्त हुई, उन्हें इसकी जरा भी भनक नहीं लग सकी। कौशल ने बताया कि घटना के दौरान किसी के चीखने-चिल्लाने की आवाज भी नहीं सुनाई दी।
दोनों बच्चे मेरे खिलौने थे, रात 9 बजे तक साथ थे
धीरज के दोनों मासूम बच्चों एकता व ध्रुव को यादकर बुजुर्ग मकान मालकिन कौशल की आंखें नम हो गईं। रुंधे गले से कौशल ने बताया कि दोनों बच्चे उसके लिए खिलौने जैसे थे। वह अधिकांश समय उनके पास ही खेलते रहते थे। रात को भी वे 9 बजे तक उन्हीं के पास खेल रहे थे। जिसके बाद ऊपर जाकर सो गए। सुबह देखा तो पूरा परिवार खत्म था। धीरज को फंदे पर लटका देख वह बच्चों व उनकी मां की लाश देखने की हिम्मत नहीं जुटा सकीं।
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